आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ये इंतिज़ार की घड़ियाँ ये शब का सन्नाटा,
इस एक शब में भरे हैं हज़ार साल के दिन.
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