आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें, यूं ही मुसाफिरों की तरह . यादें वहीं खडी रह जाती हैं , रूके रास्तों की तरह।
एक "उम्र" के बाद, "उस उम्र" की बातें, "उम्र भर" याद आती हैं , पर "वह उम्र" फिर, "उम्र भर" नहीं आती!
No comments:
Post a Comment