आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मिलो कभी चाय पर, फिर किस्से बुनेंगे, तुम खामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे!
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