आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
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