आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रोज़ तुमसे नफरत करने का, एक बहाना ढूँढता हूँ, रोज़ सौ बहाने मिल जाते हैं, तुम्हें और चाहने के!
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