आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रूबरु होने की तो छोड़िए, गुफ्तगू से भी कतराने लगे हैं! जबसे गुरूर ओढ़े हुए कुछ रिश्ते, अपनी हैसियत पर इतराने लगे हैं!!
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