आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दिल से निकली ही नहीं शाम जुदाई वाली, तुम तो कहते थे बुरा वक़्त गुज़र जाता है।
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