आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
शायद यही ज़िंदगी का इम्तिहान होता है, कि हर एक शख्स गुलाम होता है। कोई ढूढ़ता है ज़िंदगी भर मंज़िलों को, कोई पाकर मंज़िलों को भी बेमुकाम होता है।।
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