आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत, यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है!
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