आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ऐसे माहौल मे दवा क्या है, दुआ क्या है, जहाँ कातिल ही खूद पूछे की हुआ क्या है!
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