आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कैसे लड़ूँ मुक़दमा खुद से उसकी यादों का, ये दिल भी वकील उसका, ये जान भी गवाह उसकी!
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