आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ग़ज़लों का हुनर साकी को सिखायेंगे, रोएंगे मगर आँसू नहीं आयेंगे; कह देना समंदर से हम ओस के मोती हैं, दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आयेंगे।
No comments:
Post a Comment