आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अब कहां दुआओं में वो बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें, अब तो बस जरूरतों के जुलुस हैं, मतलबों के सलाम हैं.
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