आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
प्रीत पाहुन के लिए मन का झरोखा खोलो, शब्द असमर्थ हैं सब मौन की भाषा बोलो। अपने विश्वास की जब तुमको परख करनी हो, अपनी मंज़िल की लगन जग की थकन से तोलो ।।
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