आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मिट गये सब ज़ख्म, बस निशांँ बाकी रह गया! सज़ा मुकम्मल हो गयी, करना गुनाह बाकी रह गया।
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